माँ गंगा की निर्मलता को क्यों चिंतित है संत समाज | स्वामी सच्चिदानंद का चिंतन
हमारे प्रचीन भारतीय वैदिक परंपरा व धर्मशास्त्रों से लेकर आज के सरकारी दस्तावेजों में तक माँ गंगा को जीवंत माना गया है। अथार्त यह माना गया है कि माँ गंगा इस धरती पर हम जैसे ही जीवित स्वरूप में विद्यमान है। माँ गंगा हम मनुष्य रूपी पुत्र-पुत्रियाँ के कष्टों के निवारण हेतु सदैव तत्पर रहती है। किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करती। सोचने वाली बात है, की क्या माँ स्वरूप देवी गंगा के प्रति हमारा कोई कर्तव्य नहीं ?
क्या अपनी माँ की सेवा और उसे साफ रखने के लिए हमें सरकारी किसी कानून के दबाव की जरूरत है ? जरूरत है तो एक बार गंगा तट पर आकर आंखे मूंद कर माँ गंगा को जीवंत स्वरूप मानते हुए अपना नजरिया बदलने की। आज हमारा संत समाज जिसके वैदिक क्रियाओं का आधार ही माँ गंगा है। माँ गंगा की दुर्दशा देख आहत है।
आइए, माँ गंगा की पवित्रता और अविरलता के लिए हम सब मिलकर एक जुट होकर प्रयास करें।
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