बहुत लोगों के लिए मेरी आवाज ही है मेरी पहचान

“बहुत लोगों के लिए मेरी आवाज ही है मेरी पहचान”

ये तो वो माँ सरस्वती की मुझ पर कृपा है, जो इस काबिल हूं कि आज दो मीठे शब्द बोल पाता हूं। मैं जो कुछ भी हूं उसी के आर्शीवाद से हूं गुरूदेव।

मेरा नाम सुनील थपलियाल है। तीर्थनगरी मेरे लिए मेरी कर्म भूमि रही। शहर में विभिन्न सरकारी व गैरसरकारी कार्यकर्मों व संस्थाओं के सैकड़ों सम्मेलनों में मुझे मंच संचालन करने का अवसर प्राप्त हुआ। इसलिए शहर के लोगों के बीच मुझसे ज्यादा मेरी आवाज अपनी पहचान बना चुकी है, ये सब श्रोताओं का प्यार है। मैं स्क्रिप्ट तैयार नहीं करता बस मंच पर आने से पहले माँ शारदे का स्मरण भर करता हूं, तो लगता है कि वो स्वयं मेरी जिहवा में आकर बैठ जाती है। उसके बाद संचालन खुद ब खुद होने लगता है। मेरे लिए एंकरिंग कोई टालमटोली या जल्दबाजी का काम नहीं, मैं बड़ी जिम्मेदारी के साथ मंच पर आता हूं कार्यक्रम की रूपरेखा व उद्देश्य को पहले अपने अंतरमन से जोड़ उसमें भावनाओं के रंग भरने के बाद ही उसे प्रस्तुत करता हूँ। क्या कहूँ अब, मेरा तो जीवन बड़ा संघर्षों में रहा है। ऐसे में सकारात्मक सोच ही मेरा सबसे बड़ा हथियार बना।

मेरा जन्म वर्ष 1972 में टिहरी गढ़वाल के घनस्याली ब्लाॅक अंर्तगत गांव “अंथवाल” में हुआ। सात वर्ष मेरी उम्र थी जिस वक्त पिता का साया हमेशा के लिए सर से उठ गया। आर्थिक स्थिति बिगड़ गई तो मेरे बड़े भाई ने नौकरी कर किसी तरह से परिवार का भरण-पोषण किया। ठोकरे खाते हुए किसी तरह प्रारम्भिक शिक्षा पूरी की फिर ग्रेज्युऐशन के लिए ऋषिकेश आया। 1991 से 1993 तक इसी शहर में अखबार बेचे, फैक्ट्रियों में लगा फिर किसी तरह ग्रेज्युऐशन कर सका। आज जरा-जरा सी बात के लिए युवा आत्म हत्या की बात करते हैं तो बड़ा दुःख होता है। तो साहब! आप लोगों के आर्शीवाद से मुनि-की-रेती शिशु मंदिर में पढ़ाने लगा। भूगोल शास्त्र से एम0ए0 किया और फिर रिसर्च भी कर डाली। बी0एड0 तक की शिक्षा प्राप्त की।

इसी बीच वर्ष 1996 से 1997 तक भारत की सुप्रसिद्ध पत्रिका कल्याण में बतौर प्रूफ रीडर काम किया, इससे न केवल मेरा शब्दकोष बढ़ा बल्कि मेरे लेखन में सुधार भी आता गया। मैंने अब तक लगभग 150 से अधिक कविताएं, सैकड़ों आलेख सहित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं के संपादन में योगदान दिया। मेरा लेखन अधिकतर प्रेरक विषयों पर रहा है इसके अलावा माँ और पहाड़ का दर्द व संस्कृति को मैंने अपने शब्दों से उजागर करने का काम किया है। मैं वर्तमान में गढ़भूमि लोक संस्कृति संरक्षण समिति, गंगा पर्यावरण समिति, आवाज साहित्यिक संस्था व हिंदी साहित्य भारती से जुड़कर निरंतर अपनी संस्कृति, समाज व साहित्य के लिए कार्य कर रहा हूं। मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार आप सब लोगों का प्यार है, मेरे उत्कृष्ट लेखन के लिए मुझे केन्द्रीय हिंदी संस्थान सहित विभिन्न संस्थाओं व सरकारी तंत्र द्वारा सम्मान पत्र व अभिनन्दन पत्रों से सम्मानित होने का गौरव प्राप्त है।

मेरा मानना है कि जीवन में परिस्थितियाँ कितनी भी विकट हो लेकिन हमें जीवन में निराशा का भाव नहीं, बल्कि सदैव आशा का भाव रखना चाहिए।

जय माँ सरस्वती!

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