उत्तराखण्ड में टैनिस के फकीर कहे जाते थे पी0डी चंदोला।

उत्तराखण्ड पौड़ी अंर्तगत रावत गांव लंबे समय से अखबारों की सुर्खियां बना हुआ है। कारण है यहॉ प्रस्तावित लॉन टेनिस कोर्ट। इस टैनिस कोर्ट को बनवाने के पीछे रावत गांव के ही निवासी मेजर गोर्की चंदोला का मुख्य प्रयास है। इस कोर्ट को बनवाने के पीछे का कारण स्पष्ट करते हुए मेजर ने टैनिस से जुड़े इतिहास का भी खुलासा किया। करीब 1985—87 के समय में स्वतंत्र भारत नामक अखबार में तात्कालीन वरिष्ठ पत्रकार योगेश धस्माना द्वारा प्रकाशित लेख व कुछ दस्तावेज प्रस्तुत कर उन्होंने महान टैनिस खिलाड़ी पीडी चंदोला यानी परमेश्वरी दत्त चंदोला का जिक्र किया।

कौन हैं पीडी चंदोला और आज बनने वाले इस टैनिस ग्राउंड से उनका क्या नाता है। आइये जानते हैं:— ​

इतिहास गवाह है कि दुनिया के जितने भी महान व्यक्तित्व हुए हैं उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने हौसले, हिम्मत और इच्छा शक्ति की बदौलत कठिन से कठिन मुकाम हासिल किए हैं। उन्हें में से एक थे, परमेश्वरी दत्त चंदोला।

पौड़ी रावत गांव के रहने वाले पी0डी चंदोला की पहचान आज भी एक महान टेनिस खिलाड़ी के रूप में की जाती है। टेनिस खेल के प्रति उनका अटूट प्रेम देखते हुए उनके चाहने वालों ने उन्हें नाम दिया टेनिस का फकीर। टेनिस के दिवाने गढ़वाल के इस सपूत की यह कहानी है आज से 90 साल पहले की। यानी आजाद भारत के 17 वर्ष पहले जब भारत में गोरों यानी अंग्रेजों का राज था।
वह दौर जब भारतीयों को उनके ही देश में सामाजिक तौर पर बहुत सी पाबंदियों का सामना करना पड़ता था। जिस दौर में क्रांतिकारी भारतीयों के मूलभूत अधिकारों के लिए जगह-जगह आंदोलन कर रहे थे। वहीं उत्तराखण्ड की सुंदर और शांत पहाड़ियों के बीच नौजवान पीडी चंदोला भी गढ़वाल में टेनिस के खेल को अंग्रेजों के चुंगल से छुड़ा ले जाने का मन बना चुका थे।
उत्तराखण्ड के पौड़ी जनपद अंर्तगत रावत गांव में  पी0डीचंदोला का जन्म वर्ष 1907 में एक साधारण से परिवार में हुआ। बचपन से कुशाग्र बुद्धि के धनी पी0डी चंदोला कुछ कर गुजरने की चाह रखते थे। नौजवान चंदोला को टेनिस से उस वक्त लगाव हुआ जब उन्होंने पहली बार ब्रिटिश अधिकारियों को टेनिस खेलता देखा। गढ़वाल के सर्वाधिक पुराने इस टेनिस ग्राउंड में ब्रिटिश अधिकारियों के अलावा किसी भी भारतीय को खेलने की इजाजत नहीं थी। लेकिन नौजवान  चंदोला के दिलो दिमााग में रात भर टेनिस का दृश्य चलता रहा। लिहाजा कहीं से टेनिस की गेंद और रैकेट ले आए और घर की दीवार पर ही खेल की प्रैक्टिस शुुरू कर दी। टेनिस के प्रति उनकी रूचि के चर्चे अंग्रेज अधिकारियों तक पहुंचने लगे। जब पीडी चंदोला के खेल का जौहर अंग्रेज अधिकारियों ने देखा तो वे भी अवाक रह गए। बिना किसी तकनीकी सुझाव व कोच के पीडी चंदोला माहिर किसी पेशेवर खिलाड़ी की तरह खेल रहे थे।

प्रारम्भिक शिक्षा गढवाल से प्राप्त करने के बाद पीडी चंदोला ने वर्ष 1928 में इंटरमीडिएट के लिए देहरादून के डीएबी कॉलेज में दाखिला ले लिया। कॉलेज में पहुंच कर टेनिस के प्रति उनका प्यार और भी परवान चढ़ने लगा। वे यहाँ भी अपने खेल के लिए सब के बीच सुर्खियां बटोरने लगे।

परमेश्वरी दत्त चंदोला को वर्ष 1930 में मिली बड़ी पहचान।

इसी बीच वर्ष 1930 में परमेश्वरी दत्त चंदोला को प्रदेश स्तर पर टेनिस प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने का अवसर मिला। अपनी बेहतरीन प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए परमेश्वरी दत्त चंदोला को नई पहचान मिली। जिसके बाद लखनऊ में आयोजित टेनिस प्रतियोगिता में भाग लेने चंदोला अपने निजी खर्च पर लखनऊ पहुंचे और वहाँ धमाकेदार प्रदर्शन किया और एकल खिताब अपने नाम किया। उसके बाद टेनिस खिलाड़ी की पहचान पा चुके चंदोला ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

पौड़ी में टैनिस ग्राउंड को अंग्रेजों के चंगुल से दी आजादी:—

गढ़वाल के टेनिस प्रेमियों के लिए वर्ष 1930 पीडी चंदोला की बदौलत महत्वपूर्ण साबित हुआ। चंदोला के खेल के चर्चे जब कमिश्नरी तक पहुंची तो डिप्टी कमिशनर मेशन ने इबट्सन टेनिस ग्राउंड को भारतीयों के लिए खोल दिया। अब अंग्रेज अधिकारियों के अलावा भारतीयों को भी मौका दिया जाने लगा।  ग्राउंड पर तारादत्त गैरोला, घनानंद बहुगुणा, पी0डी चंदोला सहित अन्य भारतीय टेनिस प्रेमी भी नजर आने लगे। सही मायने में पौड़ी के भीतर पीडी चंदोला के टेनिस खेल स्वतंत्रता आंदोलन की यह पहली जीत थी।

टेनिस की ऐसी दीवानगी कि तय कर गए 1900 किलोमीटर की दूरी:-

आज से 84 वर्ष पहले अपने टेनिस खेल के जुनून के चलते पीडी चंदोला ने उत्तराखण्ड के यमुनोत्री से मुम्बई शहर तक लगभग 1900 किलोमीटर की दूरी तय की।   दरअसल अपनी शिक्षा दीक्षा पूरी करने के बाद पी0डी चंदोला को अगले वर्ष स्वास्थ्य विभाग में नौकरी मिल गई। उनकी पोस्टिंग सुदूर यमुनोत्री में हो गई। यह वह समय था जब उनके जीवन से टेनिस काफी वक्त के लिए दूर हो गया। वर्ष 1938 एक दिन अचानक उनकी नजर अखबार में छपि एक खबर पर पड़ी।
जिसमें मुम्बई में अखिल भारतीय टेनिस प्रतियोगिता होने की सूचना थी। फिर क्या था मानो पीडी चंदोला के भीतर का सोया शेर फिर से उठ खड़ा हुआ। छुटटी की अर्जी डाली और निकल पड़े मुम्बई के लिए। कभी पैदल, कभी बस तो कभी ट्रेन से ठोकरे खाते हुए पी0डी चंदोला ने यमुनोत्री से लगभग 1900 किलोमीटर की कठिन और थका देने वाली दूरी हफ्तेभर में पूरी कर ली। पहाड़ क्षेत्र का नौजवान पहली बार अंग्रेजों से सीधा लोहा लेने मुम्बई पहुंचा था।
सहमे हुए लेकिन आत्मविश्वास से भरे हुए चंदोला को चैलेंज राउंड से गुजरना पड़ा। टूर्नामेंट के आरंभिक तीन दौर में चंदोला ने शानदार प्रदर्शन आयोजकों और अंग्रेजों को हैरत में डाल दिया। चौथे दौर में चंदोला का मुकाबला तत्कालीन पेशेवर खिलाड़ी ईबी हौब से संघर्षपूर्ण मुकाबला करते हुए 5 सैटों से हार गए। किंतु इसी ईबी हौब ने प्रतियोगिता का एकल खिताब जीतकर पी0डी चंदोला को सर्वश्रेष्ठ उभरता हुआ खिलाड़ी बताया और पीडी चंदोला के सम्मान में तालियां बजती रही। मानो अंग्रेजी हुकूमत भी अब यह मान चुकी थी कि चंदोला उनकी टक्कर के खिलाड़ी हैं।

मुम्बई में आयोजकों के भत्ते को ठुकरा आए चंदोला:—

पीडी चंदोला का यह प्रदर्शन देख अंग्रेज शासक और दर्शक बेहद प्रसन्न भी थे। लिहाजा आयोजकों ने उन्हें भत्ता देने की पेशकश की लेकिन महान खिलाड़ी चंदोला ने वह पेशकश यह कह कर ठुकरा दी कि टेनिस उनके लिए मात्र एक खेल नहीं यह तो उनका जीवन है और जीवन अनमोल होता है। उनकी इस बात पर आयोजक हैरान भी थे और मंत्रमुग्ध भी। पीडी चंदोला का खेल और उसके प्रति उनका प्यार अब पूरे उत्तर भारत में लोकप्रिय हो गया।

7 बार नौकरी से निकाले जाने पर मिली टेनिस का फकीर उपाधि:

सरकारी सेवा में रहते हुए भी चंदोला अपने अभ्यास में जुटे रहे। वह जितना समय अपने काम को देते उतना ही समय टेनिस को। लेकिन कभी कभार उनकी यह दीवानगी उनके आला अफसर और सहकर्मियों को रास नहीं आती। जिस कारण उन्हें लगभग 7 बार नौकरी से निकाला गया। इसके बाद तो उन्हें लोगों ने टेनिस का फकीर की उपाधि दे डाली।

वर्ष 1941 में चंदोला ने हासिल की कई उपलब्धियां, देश के दिग्गज खिलाड़ी को दी मात:

लगभग वर्ष 1941 के आसपास का समय चंदोला के लिए नई उपलब्धियों का वर्ष साबित हुआ। इसी साल अखिल भारतीय टेनिस प्रतियोगिता का पहली बार आयोजन किया गया। चंदोला इसमें अपना प्रदर्शन करने के लिए लालायित थे। धमाकेदार प्रदर्शन कर पी0डी चंदोला ने यह प्रतियोगिता अपने नाम कर खिताब जीत लिया। इस संघर्षपूर्ण मैच में चंदोला ने देश के नामी खिलाड़ी एनसी भटनागर को 6-4 व 4-6 तथा 6-4 से पराजित कर सनसनी फैला दी। इस जीत के बाद अमेठी के राजा संजय सिंह ने चंदोला को अपने परिवार का सदस्य बना लिया।

अखिल भारतीय वेटरन टेनिस टूर्नामेंट को लगातार 9 वर्ष तक जीतकर बने सिरमौर: 

टेनिस में 1941 की सफलता के बाद 1956 में पुनः लखनउ में आयोजित रणवीर मैमोरियल टेनिस प्रतियोगिता के फाइनल चक्र में रमेश मोहन को हराकर पीडी चंदोला ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की। इस खिताब को जीतकर चंदोला की ख्याति राष्ट्रीय स्तर तक पहुंची। 1956 से 1961 तक लखनऊ में आयोजित अखिल भारतीय वैटरन टेनिस टूर्नामेंट को लगातार 9 वर्षों तक जीतकर वे टेनिस के सिरमौर बन गए।

टेनिस और पीडी चंदोला के बीच कभी उम्र आड़े नहीं आई।

टेनिस फकीर पीडी चंदोला के खेल जीवन में उम्र कभी आड़े नहीं आई। इसका उदाहरण 1959 में कानपुर में आयोजित अपर इंडिया लॉन टेनिस प्रतियोगिता तथा इसी वर्ष बनारस यूनियन क्लब टेनिस प्रतियोगिता है। चंदोला ने 57 वर्ष की आयु में फुर्ती के साथ खेलते हुए खिताब जीतकर आयोजकों को हैरत में डाल दिया।

यह था पीडी चंदोला के जीवन का सर्वश्रेष्ठ और आखरी मैच।

गढ़वाल में 1986 में एक अखबार को दिए अपने अंतिम साक्षात्कार में चंदोला ने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ मैच के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि 1967 में लखनऊ में आयेाजित मैच में उन्हें हमेशा याद आता है।
ऑस्ट्रेलिया का नामचीन टेनिस खिलाड़ी बॉब कार्मिनल भारत में आयोजित कई प्रतियोगिताओं में अपने विरोधियों को धूल चटा चुका था। लखनऊ आने से पहले वह पूणे के टेनिस खिलाड़ी रामनाथ कृष्णन को हरा चुका था। मुझे मालूम हुआ तो लखनऊ में मैने भी चुनौती स्वीकार कर बॉब के खिलाफ मैच खेला। इस संघर्ष पूर्ण मैच में बॉब ने मुझे 7-5, 6-4 से पराजित कर दिया। उस वक्त बॉब की उम्र 24 और मैं 63 वर्ष का था। चंदोला का यही मैच राष्ट्रीय स्तर पर अंतिम मैच साबित हुआ फिर उन्होंने गढ़वाल लौटकर तरूण लड़कों को टेनिस प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। जानकारी के मुताबिक उनकी मृत्यु के 6 माह पूर्व तक प्रशिक्षण शिविर चलता रहा।

मेजर गोर्की चंदोला :— उत्तराखण्ड के पीडी चंदोला टेनिस के क्षेत्र में किसी नायक से कम नहीं थे। आज के नौजवानों को उनके जीवन संघर्ष से कुछ सीखना चाहिए।
जहॉ आज हम गांव में सुविधाऐं न होने की बात कह कर अपने पुरूखों का घर—बार छोड़ जाते हैं, वहीं पीoडी चंदोला जैसे लोग सीमांत गांव यमुनोत्री से मुम्बई पैदल, बस और ट्रेन से हफ्ताभर सफर कर अपने लक्ष्य तक पहुंचे हैं।  मैं चाहता हूं की उनकी याद में पौड़ी क्षेत्र में टेनिस ग्राउंड हो जहॉ टेनिस में रूझान रखने वाले खिलाड़ियों को प्रशिक्षण मिले ताकि वे देश और दुनिया में उत्तराखण्ड का नाम रोशन करे। क्योंकि वे स्वयं यही चाहते थे और यही उस पुर्णयात्मा के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

Note- इस लेख में प्रस्तुत तथ्य 1985—87 के समय में स्वतंत्र भारत नामक अखबार में तात्कालीन वरिष्ठ पत्रकार योगेश धस्माना द्वारा प्रकाशित समाचार से लिए गए हैं। इसके अलावा उनके पौत्र  मेजर गा्ेर्की चंदोला द्वारा प्रस्तुत तथ्यों व बयान को भी इस लेख का आधार बनाया गया है। लिहाजा इन घटनाओं के सत्य होने का दावा या पु​​ष्टि  inrishikesh पोर्टल स्वयं से नहीं करता है। धन्यवाद।

Share: